रोज़ डे

      रोज़ डे

माँ तेरे चरणों की धूल,
मैं माथे तिलक लगाऊ।
तू अगर कह दे मुझे तो,
ता उम्र रोज़ डे बन जाऊं।।

तेरे आंचल की छांव में,
मैं संसार का सुख पाऊं।
पत्थर पर फल देने वाली,
तेरे लिए खुद को मिटाऊं।।

बाबू, सोना, सुग्गा कह कर,
माँ जब तुम मुझे बुलाती हो।
पा कर तेरे इस दुलार प्यार को,
मैं स्वयं में मंत्र मुग्ध हो जाऊं।।

माँ तुम हो करूणा का सागर,
निःस्वार्थ प्रेम बरसाने वाली।।
निज करूँ मैं तेरी सेवा साधना,
ओज पुत्र श्रवण मैं बन जाऊं।।

माँ सहनशीलता की देवी तुम,
मैं तुम्हें उर वाटिका में बसाऊं।
बिन तेरे पग का हर कांटा को,
मैं सुमन गुलाब का बन जाऊं।।

कुन्दन बहरदार
पूर्णिया, बिहार
07-02-2020


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माँ /Maa

भारत के वीर सपूतों