दोहा प्रतियोगिता
17.04.2020

1-अर्चन

अर्चन वंदन मातु का,जो करता नर रोज।
रोग -शोक से मुक्त हो,मिलता शोभन ओज।

2-अर्पण

तन मन अर्पण देशहित,यह गौरव की बात।
मनसा वाचा कर्मणा,जपें देश दिन रात।

3-नर्तन

नर्तन‌ करती नर्तकी,आकर्षित सब लोग।
नजर- नजरिया से सभी,करें कला का भोग।

4-गर्जन

भूखा गर्जन कर रहा,गुफा विराजा शेर।
चर कानन सब डर गये,छिपे पहाड़ी टेर।

5-प्रखर
प्रखर किरण नभ से चली,किया तिमिर का नाश।
कोना-कोना दीप्त हो,छाया पुंज प्रकाश।

6-नश्वर
नश्वर जीवन पर कभी,करना क्या अभिमान।
गुब्बारा- सा फूटता,पल भर में श्रीमान।

7-ईश्वर
दीन -हीन के संग में,ईश्वर आठो याम।
इनकी सेवा से सदा,पूरन‌ होते काम।।

8-स्वर

स्वर व्यंजन का मूल है,इसमें बसता प्राण।
शब्द ब्रह्म इनसे बने,जो वाणी के त्राण।

9-निर्झर

निर्झर सरिता सी बहे,मलय पवन दिन -रात।
परहित वाला भाव ले,देती नवल प्रभात।

10-निर्विकार

निर्विकार सेवा करो,रहो अपेक्षा दूर।
तभी ईश की हो कृपा,झरता सच्चा नूर।।

कवि-कमल किशोर'कमल'
       हमीरपुर बुन्देलखण्ड।

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