संदेश

मजदूर

मजदूर मजदूर वो हैं  जो धूप में तपकर, सोना उपजाते हैं। खून पसीना बहाकर, हलक तक अन्न पहुँचाते हैं। झुग्गी झोपड़ियों में रहकर, महलों के ईंटों को बनाते हैं। अपनी शिल्पकारी से वो, हमारे घर को सजाते हैं।। हमारी गाड़ियों को चलाने वाला,  अपने घर पैदल जाते हैं।  जो हमारे अन्न दाता हैं,  वो खुद भूखे रह जाते हैं।  उनके किस्मत को कोसूं,  या अंधी व्यवस्था को दोष दूँ।  नीचले पायदान पर बैठे,  सियासी के चाटुकारों को कोस दूँ।  उठो हे! देश के निर्माताओं,  तुम्हें हक की लड़ाई स्वयं लड़नी है।  गरीबी की बेड़ियों को तोड़कर,  एक ऊँची उड़ान भरनी है।।  कुन्दन बहरदार  पूर्णिया, बिहार 
दोहा प्रतियोगिता 17.04.2020 1-अर्चन अर्चन वंदन मातु का,जो करता नर रोज। रोग -शोक से मुक्त हो,मिलता शोभन ओज। 2-अर्पण तन मन अर्पण देशहित,यह गौरव की बात। मनसा वाचा कर्मणा,जपें देश दिन रात। 3-नर्तन नर्तन‌ करती नर्तकी,आकर्षित सब लोग। नजर- नजरिया से सभी,करें कला का भोग। 4-गर्जन भूखा गर्जन कर रहा,गुफा विराजा शेर। चर कानन सब डर गये,छिपे पहाड़ी टेर। 5-प्रखर प्रखर किरण नभ से चली,किया तिमिर का नाश। कोना-कोना दीप्त हो,छाया पुंज प्रकाश। 6-नश्वर नश्वर जीवन पर कभी,करना क्या अभिमान। गुब्बारा- सा फूटता,पल भर में श्रीमान। 7-ईश्वर दीन -हीन के संग में,ईश्वर आठो याम। इनकी सेवा से सदा,पूरन‌ होते काम।। 8-स्वर स्वर व्यंजन का मूल है,इसमें बसता प्राण। शब्द ब्रह्म इनसे बने,जो वाणी के त्राण। 9-निर्झर निर्झर सरिता सी बहे,मलय पवन दिन -रात। परहित वाला भाव ले,देती नवल प्रभात। 10-निर्विकार निर्विकार सेवा करो,रहो अपेक्षा दूर। तभी ईश की हो कृपा,झरता सच्चा नूर।। कवि-कमल किशोर'कमल'        हमीरपुर बुन्देलखण्ड।

फागुन खिल जाने दो

॥फागुन खिल जाने दो ॥   ♡♡♡♡♡♡♡♡♡♡ रात मदहोश हुई गीत मचल जाने दो । साँसें बेताव हुईं प्यार में ढल जाने दो । क्या पता फिर ये शमा लौट के आये न आये । दिल के गुबार चलो आज निकल जाने दो । स्वप्न सफल होने दो अरमान पिघल जाने दो । तमन्नायें पूरीं हों आशायें फल जाने दो । बासन्ती बयार चली फागुन खिल जाने दो । धरती को गगन से आज मिल जाने दो । प्रेम दीप जल उठा पतंगे को आने दो । सदियों की तड़फ आज उसकी मिट जाने दो । आज नहीं पहरा है स्वच्छंद चले आने दो । भ्रमर को फूलों का मकरन्द पी जाने दो । वर्षों के पुण्य फलित फल उनका पाने दो । पर्दे की ओट से बाहर आ जाने दो । ॥॥॥॥॥डाॅ पारदर्शी॥॥॥॥॥

मेरा हिंदुस्तान

मेरा हिंदुस्तान .......................... चारों तरफ बज रही,  प्रेम की शहनाई थी। निहत्थे सुप्त सैनिकों पर , जिसने गोली बरसायी थी। प्रेम दिवस को जिसने, शोक दिवस बनाया था। खिलखिलाते आँगन को,  लहूलुहान जिसने किया । भारत माता की कोख को, जिसने सूना कर दिया। मेरी रंगीन दुनियाँ को , जिसने रंगहीन बनाया । माँ भारती के आरती में, जान देकर अपना तन, तिरंगे मे लिपटाया। और बचाया तिरंगे का मान। ऐसे अमर वीरों को , मेरा शत्‌ -शत्‌ प्रणाम। तब माँ भारती के बेटों ने , अपना रंग दिखाया। दुश्मन के आँगन में जाकर, तांडव नृत्य रचाया। 26 फरवरी मंगलवार का दिन था, हनुमान बन कर उसकी लंका में, आग लगाने हनुमान बनकर आया । थर्राने लगा दुश्मन, और युद्ध विराम फ़रमाया। हमने तेरे चरणों की, हे!माँ ले ली है कसम। जान से प्यारा है, मेरा महबूब वतन। जो काम शहीदों के रह गए अधूरे। उस काम को माँ हम करेंगे पूरे। 40 सिर के बदले हम, असंख्य मुंड काटकर लायेंगे। धारण कर चूड़ी और सिंदूर, रणचंडी बन कर जायेंगे। खींच कर दुश्मन को घर से , सीने पर गोली मार गिराएंगे। तब रोज़ हम प्रेम और खुशी ...

भारत के वीर सपूतों

हे! भारत  के  वीर  सपूतों,  माँ भारती तुम्हें पुकार रही।  तुम हो  माँ के सच्चे सुपुत्र,  जन जन ये गीत है गा  रही।। कर विनाश देश द्रोहियों का,  जो देश में विष है घोल रहा ।।  उखाड़ फेंको उनके करों को, जिन करों से शील फेंक रहा।  ऐसा  वीर  इतिहास  रचो  तुम, जैसे दिनकर प्रभा फैला रहा । उन दुष्टों को भी सबक सिखाओ, जो वर्दी पर कलंक लगा रहा ।।  उन दुश्मनों का भी संहार करो, जो देश को बांटने को कह रहा। अपनी   वो   दूषित   सोचों  से,  जन- जन में कांटों को बौ रहा।।      दिखा  दो  उनकी  औकात  को,  जो भेड़ियों के खाल में है छिपा। अपने मुल्क का नमक खा कर, दूसरे मुल्कों का गुण गा रहा ।।  हे! वीर तुम्हारी पराक्रमों पर, हम  सब  को  अभिमान  है।। एक सौ पेंतीस करोड़ जन तुम्हें, कोटि - कोटि करता प्रणाम है।।  कुन्दन बहरदार  ०६.०१.२०

रोज़ डे

      रोज़ डे माँ तेरे चरणों की धूल, मैं माथे तिलक लगाऊ। तू अगर कह दे मुझे तो, ता उम्र रोज़ डे बन जाऊं।। तेरे आंचल की छांव में, मैं संसार का सुख पाऊं। पत्थर पर फल देने वाली, तेरे लिए खुद को मिटाऊं।। बाबू, सोना, सुग्गा कह कर, माँ जब तुम मुझे बुलाती हो। पा कर तेरे इस दुलार प्यार को, मैं स्वयं में मंत्र मुग्ध हो जाऊं।। माँ तुम हो करूणा का सागर, निःस्वार्थ प्रेम बरसाने वाली।। निज करूँ मैं तेरी सेवा साधना, ओज पुत्र श्रवण मैं बन जाऊं।। माँ सहनशीलता की देवी तुम, मैं तुम्हें उर वाटिका में बसाऊं। बिन तेरे पग का हर कांटा को, मैं सुमन गुलाब का बन जाऊं।। कुन्दन बहरदार पूर्णिया, बिहार 07-02-2020

वादा साथ निभाने का

#प्रोमिस डे स्पेशल         वादा साथ निभाने का   आओ करें हम इक वादा साथ निभाने का, सारे-गिले शिकवे को आज़ से भूलाने का।        नफ़रत के सारे फूल तोड़,        प्रेम का पुष्प खिलाने का।        रिस्ते बने हैं जो छत्तीस के,        फिर से तिरसठ बनाने का। आओ करें हम इक वादा साथ निभाने का, सारे-गिले शिकवे को आज़ से भूलाने का।        विरान हुई घर की बगिया,        एक दूजे़ को नीचे दिखाने में।        द्वेष भाव से ग्रसित हैं मन,        हम ले पीड़ा उसे हटाने का। बंट गया है जो आज़ जन - जन में परिवार, करें हम वादा उसे फिर से संयुक्त बनाने का।        आए हैं जो रिश्तों में दरार ,        कोशिश करें उसे मिटाने का।        ज़ख़्म  जो  दिए  हैं  गहरे,         उस पर मरज़ लगाने का।। आओ करें हम...

माँ पर सबसे अच्छी कविता, जरूर एक बार सुने

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माँ /Maa

माँ तुम कितनी प्यारी हो, जग में सबसे न्यारी हो।। रोज सवेरे उठ जाती हो, काम सभी कर जाती हो।। खुद भूखे रहकर के तुम, पहले बच्चों को खिलाती हो। सभी दुःख दर्द को सह कर तुम , सदा फूलों सी मुस्कुराती हो।। सहनशीलता की मिसाल बनकर, अपनों बच्चों को पालती हो ।। सभी देवियों में से तुम , शाश्वत रूप अवतारी हो।। माँ तुम कितनी प्यारी हो, जग में सबसे न्यारी हो।।

इश्क़

                          ......... *इश्क़ *........ इश्क़ में दिल अक्सर इतना बैचेन क्यों रहता है, अश्क़ तो बहता है पर कुछ क्यों नहीं कहता है।। जिसके यादों में ये दिल इतना दर्द को सहता है, फिर भी इन लवों पे बस उसी का नाम रहता है।। जिसे क़बूल नहीं इश्क़ इसका ये उसी पे मरता है, उनकी यादों में ये सदा दरिया की तरह बहता है।। इसे मालूम नहीं एक दिन समंदर में मिल जाना है, चाहतों में चाहे डूबे जितना इसे वापस तो आना है।।                  -Kund@n               https://www.youtube.com/channel/UCYQGTKCklKgv-drniJAs1gg          

माँ

माँ ममता की छांव है, हर खुशियों का गांव है।। गांव है तो पूरा शहर है, माँ बिन सूना घर है।। माँ प्यार की मूरत है, सबसे सुन्दर सूरत है।। माँ देवों से भी ऊपर है, दुनियाँ में सबसे सुपर है।। माँ है तो शिवालय है, माँ बिन सूना आलय है।। माँ बच्चों की आशा है, प्यार की परिभाषा है ।।

नारी पर अत्याचार

मेरी रूह को इतना मत तड़पाओ जननी हो तुम ये मत भूल जाओ, मैं   हूँ   इस   बाग   नई  कोपल जीने का हक है मुझे भी यहां पर।          जग जननी हो तुम जरा समझों          बीज  नहीं  तो पेड़  कैसे होगें ?          पेड़  नहीं  तो  फल  कैसे  होंगे? दोनों ने जब मिलकर इस बाग को सजाया फिर क्यों  जुल्म  ढाये  मुझपर  बेकार  वो? कहीं पत्ते समझ, वो  भूल  तो  नहीं  गया लूट    रहे   पत्तझर   समझ   मजा।              तंग   आ   गई  हूँ,  मैं इस  बाग से,               जहाँ भी देखो लूटी जा रही हूँ बे मतलब के।। अब सुनो इस बाग में रहने वालों, दुर्गा - चण्डी को मत भूल जाओ जिसने पापियों का वध किया था। अब मैं भी वही रूप लूंगी, मुझे लूटने वालों का वध करूंगी।।...