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मजदूर

मजदूर मजदूर वो हैं  जो धूप में तपकर, सोना उपजाते हैं। खून पसीना बहाकर, हलक तक अन्न पहुँचाते हैं। झुग्गी झोपड़ियों में रहकर, महलों के ईंटों को बनाते हैं। अपनी शिल्पकारी से वो, हमारे घर को सजाते हैं।। हमारी गाड़ियों को चलाने वाला,  अपने घर पैदल जाते हैं।  जो हमारे अन्न दाता हैं,  वो खुद भूखे रह जाते हैं।  उनके किस्मत को कोसूं,  या अंधी व्यवस्था को दोष दूँ।  नीचले पायदान पर बैठे,  सियासी के चाटुकारों को कोस दूँ।  उठो हे! देश के निर्माताओं,  तुम्हें हक की लड़ाई स्वयं लड़नी है।  गरीबी की बेड़ियों को तोड़कर,  एक ऊँची उड़ान भरनी है।।  कुन्दन बहरदार  पूर्णिया, बिहार