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नारी पर अत्याचार

मेरी रूह को इतना मत तड़पाओ जननी हो तुम ये मत भूल जाओ, मैं   हूँ   इस   बाग   नई  कोपल जीने का हक है मुझे भी यहां पर।          जग जननी हो तुम जरा समझों          बीज  नहीं  तो पेड़  कैसे होगें ?          पेड़  नहीं  तो  फल  कैसे  होंगे? दोनों ने जब मिलकर इस बाग को सजाया फिर क्यों  जुल्म  ढाये  मुझपर  बेकार  वो? कहीं पत्ते समझ, वो  भूल  तो  नहीं  गया लूट    रहे   पत्तझर   समझ   मजा।              तंग   आ   गई  हूँ,  मैं इस  बाग से,               जहाँ भी देखो लूटी जा रही हूँ बे मतलब के।। अब सुनो इस बाग में रहने वालों, दुर्गा - चण्डी को मत भूल जाओ जिसने पापियों का वध किया था। अब मैं भी वही रूप लूंगी, मुझे लूटने वालों का वध करूंगी।।...